काली काली रेत,
लहरें श्वेत,
मद्धम ही मद्धम सूरज
चाहे शाम पधारे या भुंसारे।
जैसे जैसे रंग दरिया के पास जाता हूँ
सात सुने थे एक एक की आस लगता हूँ
मिलती न मुझको इंद्रधनुष की एक क्षण ज्योति देख,
बस काली काली रेत...
रंग-ख्वाब को मृत्यु रेत पर अब दफनाता हूँ
प्यासा है वो जिंदा होगा दांव लगाता हूँ
प्यास बुझा भी न पाएंगी लहरें ये सुफ़ैद
बस काली काली रेत...
नील गगन से मेरा परिचय बड़ा निराला है
मुझसे मिलकर उसका भी रंग काला काला है
वो संजीदा होकर कैसे बरस रहा है देख
बस काली काली रेत...
रूप अहं में क्या इठलाऊं,वैसी सूरत जैसा साया
मैं उस गुल की ग्लानि हूँ जो इत्र कभी ना दे पाया
तब भी ये गुलशन सकुचाए मेरी रंगत देख
बस काली काली रेत...
मैने खूब तराशा पत्थर वो हृदय कभी ना बन पाया
दरिया में फेंका पर उसने भी न इसको अपनाया
टुकड़े उगल गई साहिल पर लहरें ये सुफ़ैद
बस काली काली रेत...
- गौतम
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