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पत्थर

"पत्थर"      घर से थोड़ी दूर पर ही सड़क खत्म हो जाती है और तीन अलग-अलग पगडंडियां तीन दिशाओं में खुल जाती हैं। एक जंगल के अंदर बसे छोटे से गाँव को जोड़ती है। एक शायद थोड़ी दूर जाकर गायब हो जाती होगी।और तीसरी वो है जिस पर नलिनी अक्सर आती-जाती रहती है। नलिनी एक १६ वर्ष की युवती है। वह अपने रोज़मर्रा के कामों से निजात पाकर अक्सर इस पगडण्डी से होते हुए गाँव के समीप बहने वाली धारा के किनारे बैठ जाती है। वहाँ उसे बहते पानी का शोर, पंछियों के चहचाने की आवाज़ें, खुला आसमान और गाँव की चहल-पहल से दूर अपनी एक छोटी सी दुनिया मिल जाती थी। नलिनी एक नृतिका है। उस धारा के किनारे बिखरी शीतल रेत पर अपने नृत्य का नित अभ्यास करना उसकी दिनचर्या का एक हिस्सा था।      उसी किनारे पर एक पत्थर, जो कभी पानी के साथ बहकर वहाँ आया होगा, सदियों से स्थायी था। वह उस जगह को हर एक मौसम में देखा करता था। रात-दिन-दोपहर, पेड़-पौधे, जानवर, सन्नाटा और कोलाहल; वह किनारे के हर एक व्यवहार से बखूबी वाकिफ़ था। इसके अलावा भी उसकी स्मृति में ऐसी ही अनेक धाराएं, किनारे और आसमान अंकित थे। आखिर वह पहले एक बहुत बड़े भूखंड का हिस्सा जो