आलम मंद, चुस्ती में अब बात नहीं है
रात अँधेरी, जुगनू की औकात नहीं है
बेच दी है भोर,गिरवी शाम रखी है
आज की ये रात भी कौड़ी के दाम रखी है |
अब मिथ्या ही यथार्थ है,
कितना भागोगे!
छोड़ो! सो जाओ,
कितना जागोगे?
दुनिया कामचोर! कामचोर सही है,
इंसानी पुतले में ढोर, ढोर सही है |
पेचीदा होता जाएगा,
जितना बल दोगे
छोड़ो! भग जाओ,
कितना समझोगे?
खुद पे ना हो ऐसा कोई वार नहीं है,
तेरे ज़िंदा रहने के आसार नहीं हैं |
रंगती जाती है धरती,
कितना बरसोगे?
छोड़ो! मर जाओ,
कितना लड़ लोगे?
आलम मंद, चुस्ती में अब बात नहीं है,
रात अँधेरी, जुगनू की औकात नहीं है |
एक समंदर को, बोलो,
मग में भर दोगे?
छोड़ो! ढल जाओ,
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